मैं उसके मुकाबले ज्यादा बोल्ड थी - लेकिन बोल्ड दिखने की कोशिश वह ज्यादा करता था। वह विचारों से बोल्ड था और मैं व्यवहार में। इसकी वजह मेरी परवरिश थी और उसका संकोच उसके संस्कार।
अभी हमारे मेलजोल को कुछ ही दिन गुजरे थे कि उसने ठींग हाँकते हुये कहा कि वो मुझे आउटिंग पर ले जायेगा। मैं तो जैसे इसके लिये तैयार ही बैठी थी, ऊपरी अनिच्छा दिखाने की देरी थी कि वह मान-मनौव्वल पर उतर आया। वह मनाये और कोई न माने - ऐसे कम हतभागे होंगे। उसने मुझे मनाया और मैं मान गई। तय हुआ कि संडे को डेम चलेंगे। उसके पास काले रंग की के।बी. बाइक थी। उस जैसे लम्बे तगड़े आदमी के नीचे बाइक बच्चों की साइकिल जैसी लगती। प्रोग्राम तय हो चुका था कि सुबह-सबेरे ही हम लोग निकल पड़ेंगे। वही टॉकीज के मोड़ पर ठीक 9 बजे वह पहुँच जायेगा जहाँ मुझे उसको खड़े मिलना है।
मैं ठीक समय पर पहुँच गयी। अपनी कोशिश भर मैं जितनी भड़कीली ड्रेस पहन सकती थी, मैंने पहनी। टाइट नीली जींस, टाइट सफेद शर्ट, सफेद स्पोर्ट्स शूज, लहराते बाल और चमकदार काला चश्मा। वह आया और जब उसने मुझे देखा उसके तो होश फाख्ता हो गये।
बगैर एक मिनट गवाए वह बोला- 'बैठो।' मैंने मुंडी हिलाई और दोनों तरफ पैर डालकर बाइक पर सवार हो गई। केरवा डेम तक हम कब पहुँचे, मुझे नहीं पता। बस यह अहसास बना रहा कि हम इतनी जल्दी कैसे पहुँच गये हैं। उसने बाइक साइड स्टैंड पर और विल्स नेवीकट मुँह में दबाई। मैं बाइक पर ही बैठी रही और वह मुझसे टिक गया। केरवा डेम की यह सड़क अभी लगभग सुनसान ही थी और हम जैसे इक्का-दुक्का नवजात-प्रेमी अपनी गुटरगूं में मस्त थे। हमारी बातों का कोई ओर-छोर नहीं था। बातों का जैसे एक जूनून हम पर तारी था। बात की शुरूआत मैं करती कि उसका अगला सिरा उसकी जुबान पर होता।
दोपहर होने को आई थी और मुझे होश नहीं था कि मैं उससे बहुत ज्यादा चिपक कर बैठी हूँ। मैंने गौर किया कि हर गुजरने वाला शख्स हमें बहुत गौर से देखता हुआ जा रहा है। मानो हम अजूबे हों। असल में अजूबे हम थे भी। दुनिया जहान को फतह करने की रौ पर सवार थे हम। किसी की फिकर करना हमारी फितरत में नहीं था लेकिन कोई था जिसे हमारी फिकर थी - पता नहीं कहाँ से एक पुलिस वाला हमारे पास आया और अपने डंडे से उसकी बाइक पर ठक-ठक की आवाज की। कहा उसने- 'क्या हो रहा है?'
वह तो लगभग सकपका गया और मुझे दूर ढकेलने लगा। मुझे पर जैसे कोई असर नहीं हुआ। पुलिस वाला फिर बोला- 'ये क्या कर रहे हो तुम लोग।' वह बोला- 'क्या कर रहे हैं... दिखता नहीं कि बैठे हैं।'
पुलिस वाले के चेहरे पर कुटिल मुस्कान उभर आयी- 'बहुत अच्छे सड़क किनारे मोटर साइकिल खड़ी है, लड़की चिपकी जा रही है और आप कह रहे हैं कि बैठे हैं। चलो बेटा थाने वहीं पर बैठना।'
अब सकपकाने की उसकी बारी थी। घबराहट कम करने के लिये उसने सिगरेट निकाली और पुलिस वाले की ओर बढ़ाई। पुलिस वाला बोला- 'सिगरेट अब थाने में चलकर ही पीयेंगे।'
अब बोलने की मेरी बारी थी। बाइक से उतरकर मैं पुलिस वाले से बोली- 'क्या बात है, आपको क्या दिक्कत हो रही है।'
वह बोला- 'ऐसा है मैडम कि आप ना ही बोला तो अच्छा है। आप लोग रंगे हाथों पकड़े गये हैं और आपको थाने तो चलना ही पड़ेगा।' उसके चेहरे पर हवाईयाँ उड़ रही थीं और मुझे भी भीतर तक झुरझुर महसूस होने लगी। चेहरे को कड़ा करके मैं बोली- 'थाने जाने की क्या जरूरत यहीं मामला रफा-दफा नहीं कर सकते।'
पुलिस वाला ढीला पड़ने लगा बोला- 'ठीक है पाँच सौ का नोट निकालो और दफा हो जाओ।'
मुझे अपने बैग के साथ उसके बटुए का ध्यान हो आया, जिसका आखिरी दस का नोट उसने विल्स नेवीकट खरीदने के लिये निकाला था।
हमें चुप देखकर पुलिस वाला फिर बोला- 'जल्दी करो।' जवाब में उसके मुँह से इतना भर निकला- 'इतने पैसे नहीं हैं मेरे पास।'
'खाली हाथ लड़की लेकर मौज करने निकले हो।' पुलिस वाला बोला। हमें चुप देख वह फिर बोला- 'तो फिर ठीक है, जाओ और पैसे लेकर आओ। तब तक लड़की यहीं रहेगी।'
उसके चेहरे की रंगत मानो उड़ गई। वह कहीं से भी इतने सारे पैसे लाने की स्थिति में नहीं था। मैंने बागडोर अपने हाथ में लेते हुये बाइक पर सवार हुई और एक किक में उसे स्टार्ट करके बोली- ठीक है आप लोग इंतजार करिये मैं पैसे लेकर आती हूँ। उनके किसी तरह के जवाब का इंतजार किये बगैर में वहाँ से गायब हो गई।
शनिवार था और बैंक का हाफ डे था। ताबड़तोड़ तरीके से बाइक चलाती मैं बैंक पहुँची और बगैर पासबुक के बचे-खुचे तीन सौ रुपये निकाले। इसके लिये मुझे मैनेजर के पास जाकर गिड़गिड़ाना पड़ा।
जब मैं वापस पहुँची दोनों पत्थरों पर विपरीत दिशा में मुँह किये बैठे थे। पुलिस वाले के हाथ में जब मैंने सौ-सौ के तीन नोट रखे वह तिलमिला गया। उसके बाद मैंने बगैर कुछ कहे गाड़ी घुमाई और उसे गाड़ी सम्हालने के लिये कहा। पुलिस वाला हक्का-बक्का देख रहा था। उसके मुँह से बुदबुदाते हुये शब्द निकले- 'बड़ी बोल्ड लड़की है।'
मैंने अपनी बोल्डनेस दिखाकर पुलिस वाले की कुत्सित इच्छा का गला घोंट दिया था और उसकी नजर में यह मेरा बोल्ड स्टेप था।
Monday, 25 January 2010
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7 comments:
सच में बोल्ड हैं आप....
पुलिस वाले का तो चेहरा देखने लायक होगा जब आपने गाडी स्टार्ट की होगी :)
Great.
नव संवत्सर मंगलमय हो.
हर दिन सूरज नया उदय हो.
सदा आप पर ईश सदय हों-
जग-जीवन में 'सलिल' विजय हो..
divyanarmada.blogspot.com
वाह वाह वाह वाह ....क्या बात है....क्या शानदकर झटका दिया पुलिसवाले को.....उस बरखुरदार को भी सही सबक दिया लड़की लेकर निकला है तो कम से कम पैसे तो लेकर निकल और पुलिस वाले से क्या डरना.....जब ऐसी दोस्त साथ हो
पर जनवरी के बाद कहां गोता लगा गईं आप...
kya kahun.......!!
साहस ही है समाधान सम्मान पूर्ण जीवन का..
प्रशंसनीय
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