Friday 2 July, 2010

वह कौन है?

वह दुखी होती है. उसका दर्द सिवाय उसके और कोई नहीं समझता. एक टीस जो उसके अन्तरमन में उठती है - शब्दों में बयान नहीं हो पाती. अबूझ-सी तड़प, जिसे वह उजागर नहीं कर पाती - हिचकी-सी उसके गले में फँसी रहती है. वह चाहती है कि उसकी कोमल भावनाओं को कोई समझे. लेकिन हाय! इस भयानक समय में जब दूसरे की ओर पलटकर देखने का किसी के पास अवकास नहीं, उसके मन के भीतर कौन झाँके? उसका मन रीत रहा है. वह उत्सुकता से चारों ओर नज़रें फिरा रही है कि कोई तो उसकी भावना को समझे, उसके कोमल अहसासों पर कोई तो तरज़ीह दे, लेकिन उसकी नज़रें लौट आती हैं. वे निगाहें खाली हैं. वे निगाहें आसमान तक जाकर लौटती हैं. उसकी ऑंखों में ऑंसू भर आते हैं. बिना आहट वे निकल पड़ते हैं. वे गरम ऑंसू जब गालों से होते हुए हाथों पर गिरते हैं - वह चौंक जाती है. वह बार-बार ऐसे सिहर उठती है मानो यह हकीकत नहीं एक सपना है. वह अक्सर ही सच को सपना बनाना चाहती है और सपनों को सच होता हुआ देखना चाहती है. सपने देखना और उनमें रमना उसकी कोई नयी आदत नहीं है. बहुत पहले जब उसके पंख उगना शुरू हुए थे और चीज़ों के नए अर्थ खुलना शुरू हुए थे - उसे समझ आने लगा था कि खुली ऑंखों से भी सपने देखे जा सकते हैं। सात रंगों से उसका पुराना परिचय है. रंगोली के रंगों से खेलने की शुरूआत उसने 'नौरता' पूरने से की. परिवार में सबसे जेठी संतान होने के कारण उसे तमाम छूटें सहज ही हासिल हो गयीं. वह अपने काम को लगन से और डूबकर करने की ख्याति बचपने में ही हासिल कर चुकी थी. उसका बनाया 'नौरता' अलग ही चमकता. रंगों का इस्तेमाल और श्रृंगारने की कला लड़कियों में जन्मजात होती है, लेकिन किसी में वह प्रतिभा के तौर पर उभरती है. रंगों को बरतते हुए उसे नयी-नयी सूझें उमड़ने लगतीं और पैदा होते नए-नए आकार. अपने आप ही हाथ घूमने लगते और उँगलियों से विभिन्न डिजाइनें आकार लेने लगतीं.
वह सिलसिले और सलीके से बात करने की उस्ताद है. यही कारण है कि वह राह चलते दोस्त बना लेती है. उससे कोई पूछे कि 'आपकी हॉवी क्या है'. वह शर्तिया कहेगी- दोस्त बनाना. वह साधारण-सी बात को रसमय बना देती है.

1 comment:

Rohit Singh said...

क्या हुआ। इतना दर्द अचानक। इन छह महीनों में क्या हो गया। हर सपना सच होता नहीं औऱ सच कभी सपना नहीं होता। पर ऐसा कौन सा सच था जो दर्दभरा बन गया। किसने उड़ान को रोक दिया आपके.?